आज
का युग विज्ञान और तकनीक का
है,
जिसमें
हम पग-पग
पर तकनीक से टकराते है। जो लोग
इस तकनीक को अपना लेते है,
वह
अपने काम आसानी से कर लेते हैं
और जो नहीं कर पाते या जिन्हें
इसके लिए दुसरों की सहायता
लेनी पड़ती है,
वह
अपना काम जैसे-तैसे
पुरा कर लेते है। जो इस झंझट
में नहीं पड़ना चाहते हैं,
वह
समय के साथ चलने वाली स्पर्धा
से पिछड़ जाते है और भविष्य
में एक दिन उनके मन में भी
विचार आता है कि यदि वह समय
की मांग को समझकर तकनीक के साथ
चल पड़ते तो आज वह वहॉं होते
जहॉं उनके साथी खड़े हैं। इसका
एक साधारण सा उदाहरण है कि
आजकल कंप्यूटर द्वारा आसानी
से रेल का टिकट बूक किया जा
सकता है। रेल टिकट काउंटर
पर लंबी लाइन में लगकर पर्ची
भरने से अच्छा हैं,
कंप्यूटर
पर रेल विभाग की ऑनलाइन साईट
पर जाकर मिनटों में रेल का
कन्फर्म टिकट प्राप्त
किया जा सकता है।
कहने
का तात्पर्य है कि तकनीक
और कंप्यूटर ने हमारे कई काम
आसान कर दिए हैं। भारत की
सरकार भी आज-कल
डिजिटल इंडिया का सपना
देख रही है। ऐसी स्थिति
में क्यों न सूचना प्रौद्योगिकी
का भरपूर लाभ उठाया जाए और इसी
के माध्यम से हमारी राजभाषा
हिंदी के विकास के लक्ष्य
को भी साधा जाए ?
आज-कल
कंप्यूटर पर हिंदी में काम
करना बहुत आसान हो गया है,
खासकर
गुगल हिंदी इनपूट और माइक्रोसॉफ्ट
इंडिक लैंगवेज टूल की सहायता
से अंग्रेजी की-लेआउट
के जरीए अंग्रेजी की ही गति
से हिंदी में भी कंप्यूटर
पर आसानी से काम किया जा सकता
है। ऐसे में हम एक ऑनलाइन
'चौपाल'
लगा
कर हमारे विचारों को हमारी
ही भाषा में स्थान दे सकते
हैं। गुगल का ब्लॉगर एक ऐसा
ही र्इ-टूल
है,
जिसके
जरीए हम हमारे विचारों को
इंद्रजाल-इंटरनेट
के जरिए जन-जन
तक पहुँचा सकते हैं। विकिपीडिया
के अनुसार चिट्ठा (अंग्रेज़ी
का ब्लॉग),
बहुवचन
चिट्ठे (अंग्रेज़ी
में ब्लॉग्स)
एक
प्रकार के व्यक्तिगत जालपृष्ठ
(वेबसाइट)
होते
हैं,
जिन्हें
दैनन्दिनी (डायरी)
की
तरह लिखा जाता है। हिंदी के
प्रचार और प्रसार में सूचना
प्रचार-प्रसार
में यही चिट्ठे (ब्लॉग)
हमारे
इलेक्ट्रॉनिक 'देवदूत'
साबित
हो सकते हैं,
जो
कलियुग में नारद मुनी का काम
कर सकते हैं। यदि आप अपने
विचारों को पूरे विश्व
में एक साथ पहुँचाना चाहते
हैं,
तो
आप अपने पसंदीदा विषय पर
ब्लॉग बनाकर अपनी बातों को
पूरे विश्व में कही भी पहुँचा
सकते हैं और उसे रोज अद्यतन
भी कर सकते हैं।
आज
कल हम देखते हैं कंप्यूटर
पर कई ब्लॉग हैं,
जो
हिंदी में हैं और नव-नवीन
विषयों पर अपने ज्ञान का
प्रसार कर रहे हैं। इसमें
हिंदी भाषा,
ज्ञान-विज्ञान,
तकनीकि-प्रौद्योगिकी,
कथा,
कहानियॉं,
शिक्षा,
स्वास्थ्य,
बाल
जगत और
अन्य विषयों
के साथ-साथ
इतिहास,
भूगोल
और भौतिक विज्ञान जैसे कई
विषयों का समावेश हैं। विशेष:
अनुनाद
सिंह जी ने इस क्षेत्र में
भगीरथ प्रयास किया है। कंप्यूटर
पर ऐसे कई विषयों पर आज जानकारी
उपलब्ध हो गई जिन विषयों
की पुस्तकें प्राय:
दुर्लभ
समझी जाती है। प्राचीन ग्रंथों
के पीडीएफ फाइलों का ब्लॉगों
के माध्यम से आसानी से डाउनलोड
किया जा सकता है। इससे अध्ययन
और अनुसंधान दोनों में सहायता
हो रही है। खासकर ऐसी पुस्तकें
जिनकी प्रतियां आज किसी
लाइब्ररी में भी मिलना
मुश्किल हैं ऐसे कई विषयों
की पुस्तकों का संकलन आसानी
से उपलब्ध हो जाता है। साथ ही
ब्लॉग बनाने वाले व्यक्ति
के विचार और दर्शन से भी परिचित
हो सकते हैं। हिंदी में लिखी
गई बहुत सी पुस्तकें आज भी
आम जन तक नहीं पहुँच पाई हैं,
जिन्हें
ब्लॉग पर दी गई लिंक के माध्यम
से सरलता से डाउनलोड किया
जा सकता है,
सोशल
मीडिया पर शेयर किया जा सकता
है और अपने पाठकों को इसकी
लिंक भी भेजी जा सकती हैं।
विकिपीडिया के अनुसार
हिन्दी का पहला चिट्ठा 'नौ
दो ग्यारह'
माना
जाता है,
जिसे
आलोक कुमार ने पोस्ट किया था।
ब्लॉग के लिये चिट्ठा शब्द
भी उन्हीं ने प्रदिपादित किया
था जो कि अब इण्टरनेट पर इसके
लिये प्रचलित हो चुका है।
चिट्ठा बनाने के कई तरीके होते
हैं,
जिनमें
सबसे सरल तरीका है,
किसी
अंतर्जाल पर किसी चिट्ठा
वेबसाइट जैसे ब्लॉगस्पॉट या
लाइवजर्नल या वर्डप्रेस आदि
जैसे स्थलों में से किसी एक
पर खाता खोल कर लिखना शुरू
करना। एक अन्य प्रकार की
चिट्ठेकारी सूक्ष्म चिट्ठाकारी
कहलाती है। इसमें अति लघु आकार
के पोस्ट्स होते हैं।आज के
संगणक जगत में चिट्ठों का भारी
चलन चल पड़ा है। कई प्रसिद्ध
मशहूर हस्तियों के चिट्ठा
लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं और
उन पर अपने विचार भी भेजते
हैं। चिट्ठों पर लोग अपने पसंद
के विषयों पर लिखते हैं और कई
चिट्ठे विश्व भर में मशहूर
होते हैं जिनका हवाला कई
नीति-निर्धारण
मुद्दों में किया जाता है।
चिट्ठा का आरंभ १९९२ में लांच
की गई पहली जालस्थल के साथ ही
हो गया था। आगे चलकर १९९० के
दशक के अंतिम वर्षो में जाकर
चिट्ठाकारी ने जोर पकड़ा।
आरंभिक चिट्ठा संगणक जगत
संबंधी मूलभूत जानकारी के
थे। लेकिन बाद में कई विषयों
के चिट्ठा सामने आने लगे।
वर्तमान समय में लेखन का हल्का
सा भी शौक रखने वाला व्यक्ति
अपना एक चिट्ठा बना सकता है,
चूंकि
यह निःशुल्क होता है और अपना
लिखा पूरे विश्व के सामने तक
पहुंचा सकता है। (स्रोत:विकिपीडिया)
चिट्ठों
पर राजनीतिक विचार,
उत्पादों
के विज्ञापन,
शोधपत्र
और शिक्षा का आदान-प्रदान
भी किया जाता है। कई लोग चिट्ठों
पर अपनी शिकायतें भी दर्ज कर
के दूसरों को भेजते हैं। इन
शिकायतों में दबी-छुपी
भाषा से लेकर बेहद कर्कश भाषा
तक प्रयोग की जाती है। वर्ष
२००४ में चिट्ठा शब्द को
मेरियम-वेबस्टर
में आधिकारिक तौर पर सम्मिलित
किया गया था। कई लोग अब चिट्ठों
के माध्यम से ही एक दूसरे से
संपर्क में रहने लग गए हैं।
इस प्रकार एक तरह से चिट्ठाकारी
या चिट्ठाकारी अब विश्व के
साथ-साथ
निजी संपर्क में रहने का माध्यम
भी बन गया है। कई कंपनियां
आपके चिट्ठों की सेवाओं को
अत्यंत सरल बनाने के लिए कई
सुविधाएं देने लग गई हैं।
(स्रोत:विकिपीडिया)
हिंदी
के प्रचार को इन ब्लॉग ने पर
लगा दिए हैं। खासकर ऐसी
पुस्तकें जिनको प्रकाशित
करने में समस्या आती है या
फिर जो पुस्तकें प्रकाशित
होने पर भी पाठकों तक नहीं
पहुँच पाती हैं,
ऐसी
पुस्तकों की सामग्री को आसानी
से पाठकों तक मात्र एक क्लिक
करने पर ही पहुँचाया जा सकता
है,
जिसपर
पाठक बैठे-बैंठे
ही अपनी प्रतिक्रिया भी दे
सकते हैं। ऐसे कई ब्लॉग हैं,
जिनका
यहॉं जिक्र करना आवश्यक
हैं,
जैसे
हिंदू महासागर,
राजभाषा
हिंदी,
प्रतिभास,
विज्ञानविश्व,
शब्दों
का सफर,
ज्ञानवाणी,
गणित
और विज्ञान,
सौर,
इंडिया
वाटर पोर्टल,
भारत
विद्या,
वैज्ञानिक
भारत,
विचार
वाटीका,
श्यामस्मृति,
विजानाति-विजानाति-विज्ञान
आदि विशेष हैं। किसी ने
कहा भी है,
कि
'आज
का ब्लॉग कल की पुस्तक है'।
अर्थात कागज-
कलम
लेकर अपने विचारों को लिखने
के बजाए यदि आप उसे सीधे
कंप्यूटर पर टाइप कर पाते
है तो वह आपके विचारों की
इलेक्टॉनिक पांडुलिपि
बन जाती है। अनुनाद सिंह जी
का 'प्रतिभास'
ब्लॉ्ग
मुझे बहुत अच्छा लगा। इनके
द्वारा बनाया गया भारत का
वैज्ञानिक चिंतन,
नवाचार
दर्पण,
अनागत
विद्या,
कालजयी,
भारत
का इतिहास,
हिंदी
विश्वकोश,
प्रतिबिंब,
अक्षरग्राम,
रचनाकार,
हिंदी
विकिपिडिया ब्लॉग,
भारत
गौरव,
भारत
का वैज्ञानिक तथा नवाचार
दर्पण ने हिंदी को मंनोरंजकता
से ज्ञानरंजकता की ओर मोड़
दिया है। टेढ़ी दुनिया पर
रवि रतलामी की तिर्यक,
तकनीकी
रेखाएँ खींचने वालीके 'छींटे
और बौछारें'
ब्लॉग
ने तकनीकि को भाषा के साथ
जोड़ने अदभूत प्रयास किया
है। भारतीय संस्कृति ब्लॉग
ने भारतीय संस्कृती की ध्वजा
को विश्व मे फहराने का काम
किया है। भारतीय संस्कृति
के सुनहरे पहलुओं का विश्व
के समक्ष प्रस्तुत करने का
यह एक सफल प्रयास माना जा सकता
हैं।
हिंखोज,
आइना
हिंदी ब्लॉग,
देबाशीष
कृत 'नुक्ताचीनी'
के
जरीए राजनीति,
सामाजिक
स्थितियाँ,
तकनीकी
जानकारी जैसे विभिन्न मुद्दों
को छूने वाले लेखों को पढा जा
सकता है। डॉ.
जाकिर
अली रजनीश जी ने अपनी वैज्ञानिक
सोच को 'विज्ञानविश्व'
के
माध्यम से व्यक्त किया
है,
जो
विज्ञान में रूचि रखने वाले
पाठकों के लिए एक अनोखा तौहफा
साबीत हुआ है।
इससे
कठीण और क्लिष्ट समझे जाने
वाले विषयों की सरल हिंदी
में जानकारी उपलब्ध हो गई
है। इसके अलावा विज्ञानविश्व
ब्लॉग ने विज्ञान की नविनतम
जानकारी को सरल हिंदी में
उपलब्ध कराने का महत्वपूर्ण
कार्य किया है,
जिससे
विज्ञान के जटीलतम सिद्धांतों
को समझने के सहायता हो रही है,
साथ
ही इससे एक वैज्ञानिक सोच
विकसित हो रही है,
जिसे
भविष्य में होने वाली
वैज्ञानिक क्रांति की
पूर्वसूचना ही कहा जा सकता
है। डा श्याम गुप्त का ब्लॉग
श्यामस्मृति देश के पौराणिक
गाथाओं का भौगोलिक और ऐतिहासिक
संदर्भ खोजने में मील का पत्थर
साबित हुआ है। पुराणों में
वर्णित घटनाओं के भौगोलिक
संदर्भ खोजने में यह ब्लॉग
गुरू का ही काम करता है। खासकर
पुराणों की जिन घटनाओं को
विज्ञानवादी काल्पनिक
मानते हैं,
उन्हें
ऐतिहासिकता और भौगोलिकता
के नक्शें पर स्थापित करने
का यह एक अनुपम सफल प्रयास कहा
जा सकता है।
रवीन्द्र
प्रभात ने अपनी 'हिन्दी
ब्लॉगिंग का इतिहास'
पुस्तक
में बताया हैं कि आवश्यकता,
उपयोगिता,
राष्ट्रीय
और अन्तर्राष्ट्रीय दुनिया
से सैकण्डों में अपनी बात के
जरिए जुड़ने वालों की बढ़ती
संख्या को देखते हुये आज
ब्लॉगिंग जैसे द्रतगामी संचार
माध्यम को पॉचवा स्तम्भ माना
जाने लगा है। कोई इसे वैकल्पिक
मीडिया तो कोई न्यू मीडिया
की संज्ञा से नवाजने लगा है
। हालांकि यह ब्लॉग आलोचना
की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है,
जिसमें
हिन्दी ब्लॉगिंग के दस वर्षों
के इतिहास को सहेजा गया हैं
तथा कालक्रम को विशेषताओं के
साथ उल्लिखित किया गया है।
इस पुस्तक में ई-एजुकेशन,
ई-पत्रकारिता,
मल्टीमीडिया,
इनस्क्रिप्ट
आधारित मानक हिंदी टंकण,
यूज़र
जेनरेटेड कन्टेन्ट.
शिक्षा-केंद्रित
सोशल नेटवर्किंग,
एजुकेशनल
गेमिंग आदि की भी चर्चा हुई
है। हिन्दी में ब्लॉग इतिहास
लेखन से संबन्धित यह पहली
पुस्तक है,
जिसमें
हिन्दी ब्लॉग लेखन में महिलाओं
की स्थति की समीक्षा है तो
हिन्दी भाषा और साहित्य में
ब्लागिंग की स्थिति निर्धारण
पर विचारोत्तेजक टीका भी।
वर्षवार विस्तृत समीक्षा के
अंतर्गत विभिन्न ब्लागों के
विषय वस्तु और उनकी गुणवत्ता
के आकलन को भी इस पुस्तक में
सम्मिलित किया गया है।(स्रोत:
विकिपीडिया)
महात्मा
गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी
विश्वविद्यालय के हिंदी
समय ब्लॉग के माध्यम से
हिंदी की महत्वपूर्ण जानकारी
प्राप्त होती है,
इसमें
हिंदी के उपन्यास,
कहानी,
कविता,
व्यंग्य,
नाटक,
निबंध,
आलोचना,
बाल
साहित्य,
संस्मरण,
यात्रा
वृत्तांत,
सिनेमा
इन परंपरागत साहित्यिक
विषयों के साथ-साथ
अनुवाद,
कोश
विज्ञान,
समग्र-संचयन,
रचनाकारों,
लेखकों,
खोज,
अनुसंधान
संबंधी नवीनमत जानकारी प्राप्त
होती है,
इससे
अध्ययन के साथ-साथ
अनुसंधान को भी दिशा मिल
रही है। वैदिक विज्ञान जिसे
सामान्य व्यक्ति मात्र
कल्पना की उडान मानता है,
इन
ब्लाग के माध्यम से इस विषय
पर शोध करने वालों को एक नई
उम्मीद की किरण दिखाई देने
लगी है। दिव्य नर्मदा इस ब्लॉग
ने हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के
मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक
संपर्क हेतु रचना सेतु का
निर्माण किया है। विधि
संहिता ब्लॉग समसामायिक
घटनाओं एवं विधिक ज्ञान
पर आधारित आलेखों का प्रस्तुतीकरण
करता है। गणितांजलि ब्लॉग
की गणित की जानकारी देता है।
अंकुर गुप्ता का हिंदी ब्लॉग,
कंप्यूटर
और तकनीक से जुड़ी नई प्रविष्ठियां
प्रस्तुत करता है। विचार
संचार मंच विज्ञान के संचार
की दिशा में कार्य कर रहा है।
प्रतीक जोशी जी का 'संगणक
विज्ञान हिन्दी में जानकारी'
यह
ब्लॉक उन लोगो के लिए है जिसे
हिन्दी में कम्प्युटर के बारे
में जानने की जरूरत है। ब्लॉगर
एक कम्प्युटर अभियांत्रीकी
स्नातक पदवी के विद्यार्थी
हैं और उन्होने इस ब्लॉग
के माध्यम से कंप्यूटर के
बारे में उत्कृष्ट जानकारी
देने की पूरी कोशिश की है। डॉ
विवेक मोहन अग्रवालजी का
'प्राणि
विज्ञान हिंदी'
यह
ब्लॉग हिंदी भाषी छात्र एवं
छात्राओं को उनकी मातृभाषा
में प्राणि शास्त्र विषय के
प्रमाणिक नोट्स मुहैया कराने
हेतु बनाया गया है। मुख्यत:
बिलासपुर
विश्वविद्यायलय के छात्र एवं
छात्रा इससे लाभान्वित हो
रहे हैं। ।
निश्चित
ही राजभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार
को हिंदी ब्लॉगर एक मील का
पत्थर साबित हुआ है।
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