राहुल
खटे,
उप
प्रबंधक (राजभाषा),
मोबाइल:
09483081656
प्राय:
समझा
जाता है कि,
विज्ञान
और तकनीकी की पढाई केवल अंग्रेजी
में ही संभव है। ऐसी धारणा
होना स्वाभाविक भी है
क्योंकि हमारी शिक्षा
प्रणाली में यही पढाया जाता
है कि विज्ञान की पढाई केवल
अंग्रेजी में ही हो सकती है।
विज्ञान और हिंदी के सभी
विद्वान यही बताते हुए पाए
जाते हैं कि विज्ञान की
परिभाषा केवल अंग्रेजी में
ही करना संभव है। हिंदी के
विद्वानों ने हिंदी को केवल
कथा,
कविता,
उपन्यास,
फिल्मी
गीतों और चुटकुलों की भाषा
बना कर रख दिया। बड़े-बड़े
पुरस्कार प्राप्त हिंदी
के विद्वान हिंदी का महिमा
मंडन करते नहीं थकते,
लेकिन
जब उनके अपने बच्चों को स्कूल
में दाखिला देने का समय आता
है,
तो
वे अंग्रेजी के स्कूलों को
ही प्राधान्य देते हैं। दूसरी
तरफ विज्ञान के विद्वान जब
भी विज्ञान की बात करेंगे
तो उनके जुबान से अंग्रेजी
ही हावी रहेगी। एक और तर्क
दिया जाता है कि विज्ञान
का उगम ही पश्चिम की अंग्रेजी
भाषा में हुआ है,
इसलिए
उसे विज्ञान केवल अंग्रेजी
में ही पढना और पढाना उचित
है। इसमें विज्ञान विषय की
पर्याप्त मात्रा में सामग्री
न होने का भी कुतर्क दिया
जाता है।
विकिपीडिया
पर प्रकाशित एक लेख के अनुसार
हिंदी के 3500
लेखक
हैं जो विज्ञान के विभिन्न
विषयों पर लिखते हैं और ऐसे
पुस्तकों की संख्या 8000
के
आसपास जो विज्ञान के विषयों
पर लिखी गई हैं। चंद्रकांत
राजू की पुस्तक ''क्या
विज्ञान का जन्म पश्चिम
में हुआ है?''
पुस्तक
में स्पष्ट रूप से बताया गया
है कि किस प्रकार भारतीय
प्राचीन विज्ञान के सूत्र जो
पहले संस्कृत में थे,
किस
प्रकार अंग्रेजी और अन्य
भाषाओं में अनुदीत कर उसे अपने
नाम से प्रसारित किया गया
है।
अब
हम इस विषय पर विचार करेंगे
कि भारत में वर्तमान समय
क्या विज्ञान की पढाई हिंदी
में संभव है और यदि संभव है
तो किस कक्षा तक,
क्योंकि
विज्ञान की पढाई हिंदी में
करवाना तो संभव है यह कुछ पालक
जानते हुए भी अधिकतर पालक
अपने बच्चों को अंग्रेजी
मीडियम स्कूलों में इसलिए
भेजते हैं,
क्योंकि
उन्हें लगता है कि जब आगे
की पढाई अंग्रेजी में ही करनी
है,
तो
बचपन से ही उन्हें अंग्रेजी
की आदत क्यों न डाल दें। लेकिन
पालकों को यह नहीं पता होता
कि उनके बच्चों यदि बचपन
में मातृभाषा और हिंदी में
विज्ञान और गणित जैसे कठीण
विषय पढेंगे तो उनकी समझ
बढेगी और जटील संकल्पनाओं
को वे और बेहतर ढंग से समझ
पाऐंगे।
लेकिन
माध्यमिक,
उच्च
और महाविद्यालयीन तथा
विश्वविद्यालयीन स्तर
की तकनीकी और विज्ञान की
पुस्तकें और पढाई हिंदी में
उपलब्ध है तो फिर स्कूल
और बचपन में ही अंग्रेजी का
बोझ लादने की आवश्यकता क्या
है। बच्चों के बस्तें और
दिमाग पर बोझ बढाने से अच्छा
है उन्हें मातृभाषा और हिंदी
में लिखी गई विज्ञान की
पुस्तकें पढवाई जाए,
इससे
उनकी विज्ञान संबंधी सोच
स्पष्ट होगी ओर उनके कोमल
मन और बुद्धि पर विदेशी भाषा
का बोझ भी नहीं बढेगा।
माध्यमिक
शिक्षा के बाद सारी पढाई
अंग्रेजी में होने की वजह से
भारतीय विद्यार्थी हीन भावना
के शिकार भी होते हैं,
साथ
में उनकी विज्ञान की कोई सोच
विकसित नहीं हो पाती या सीधे
शब्दों में कहें तो बच्चे
अंग्रेजी से सीधे तौर पर सहज
नहीं हो पाते हैं,
जिससे
उनके विचारों में मौलिकता
की कमी हो जाती है। माध्यमिक
स्तर के बाद विज्ञान,
इंजीनियरिंग,
मेडिकल
और प्रोफ़ेशनल कोर्सेस की भाषा
हिंदी में होनी चाहिए तभी
विज्ञान का सही मायनों में
प्रसार होगा। हिंदी में विज्ञान
को शैक्षणिक स्तर के साथ-साथ
रोजगार की भाषा भी बनाना होगा।
कहने का मतलब यह है कि अगर कोई
छात्र हिंदी माध्यम से विज्ञान
या इंजीनियरिंग आदि की पढाई
करें तो उसे बाजार भी सपोर्ट
करें जिससे कि उसे नौकरी मिल
सके। उसके साथ रोजगार के मामले
में भेदभाव नहीं होना चाहिए।
सरकार को इसके लिए एक व्यवस्था
विकसित करनी होगी तभी हिंदी
विज्ञान की भाषा बन पायेगा।
इसी तरह हिंदी में विज्ञान
संचार को भी रोजगारपरक बनाते
हुए बढ़ावा देना होगा।
इसका
एक और फायदा यह है कि महाविद्यालयीन
और विश्वविद्यालय स्तर
की पढाई को जो सामान्यत:
4 से
5
वर्षेां
की होती है,
उसे
घटाकर 2
से
3
वर्षों
का किया जा सकता है और अंग्रेजी
समझने में लगने वाले समय और
मेहनत से भी बचा जा सकता है।
भारत सरकार के राजभाषा नीति
को कार्यान्वीत करने में भी
इससे गति मिलेगी क्योंकि
युवापीढि हिंदी में तकनीकी
और विज्ञान के विषयों को
पढेंगे तो उन्हें केंद्र
सरकार के कार्यालयों में
रोजगार प्राप्त करने पर अलग
से हिंदी प्रशिक्षण योजना
के माध्यम से प्रबोध,
प्रवीण
तथा प्राज्ञ की कक्षाओं को
चलाने की भी आवश्यकता नहीं
होगी और उन्हें सीधे 'पारंगत'
पाठ्यक्रम
में प्रवेश दिया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त यदि स्नातक
और स्नातकोत्तर स्तर पर
कार्यालयीन हिंदी भाषा को
अनिवार्य तौर पर एक विषय
के रूप में लागू किया गया तो
इससे भी राजभाषा हिंदी के
प्रशिक्षण और कार्यान्वयन
को और भी गति मिलेगी।
प्राय:
देखा
गया है कि सरकारी कार्यालयों
में भर्ती होने वाले अधिकतर
लोग अपने तकनीकी और विज्ञान
के विषयों को अंग्रेजी में
पढ़कर आते है,
इसलिए
उन्हें अपना कार्य हिंदी
में करने में कठीनाई जाती है,
जिसके
लिए ऐसे कर्मचारियों के
लिए अलग से प्रशिक्षण
कार्यक्रम चलाना पड़ता है,
जो
सिर्फ हिंदी में कार्यालयीन
कार्य में प्रवीण बनाने के
लिए होता है।
भारत
के कुछ राज्यों में विज्ञान
विषयों को हिंदी में पढने
और पढाने से अच्छे परिणाम
सामने आने लगे है। अधिकतर
स्पर्धा परीक्षाओं में अव्वल
आने वाले विद्यार्थी हिंदी
माध्यमों से अच्छे अंक
प्राप्त करते दिखाई दे रहे
हैं। खासकर जटील विषयों को
अपनी भाषा में पढने से विषय
को समझने में आसानी होती है।
स्कूल
के विज्ञान के साथ-साथ
माध्यमिक,
उच्च
माध्यमिक,
महाविद्यालयीन,
स्नातक
और स्नातकोत्तर के विज्ञान
और तकनीकि संबंधी विषयों
की पुस्तकें हिंदी में भी
उपलब्ध है,
जिसकी
जानकारी अधिकतर लोगों को
नहीं है। जैसे विज्ञान की
सभी शाखाओं,
तकनीकी,
अभियांत्रिकी,
पॉलिटेक्नीक,
आइटीआइ,
सीए,
सीएस,
सीएमए,
कंप्यूटर,
आयकर(टैक््स),
स्पर्धा
परिक्षाओं की तैयारी से संबंधित
पुस्तकें,
धर्म,
विधिशास्त्र,
मेडिकल,
नर्सिंग,
औषध
निर्माण (फार्मसी),
बी
फार्मसी की पुस्तकें भी हिंदी
में उपलब्ध हैं। राजस्थान,
छत्तीसगढ़,
मध्य
प्रदेश,
महाराष्ट्र,
उत्तराखंड,
उत्तर
प्रदेश,
बिहार,
दिल्ली,
पंजाब,
हरियाणा
आदि राज्यों में विज्ञान
विषयों का हिंदी में आसानी
से पढाया और समझाया जा सकता
है। इससे स्पर्धा परीक्षा
और अन्य परीक्षाओं में भी
अव्वल स्थान प्राप्त किया
जा सकता है। एमएस सी आयटी जैसे
कंप्यूटर कोर्सेस में यदि
भाषा संबंधी एक अध्याय जोड़
दिया जाए तो कंप्यूटर में
प्रशिक्षण प्राप्त करते
समय ही हिंदी और अन्य भारतीय
भाषाओं में कंप्यूटर पर कार्य
करने का प्रशिक्षण दिया जा
सकता है।
वर्तमान
समय में प्राथमिक,
माध्यमिक,
उच्चतर,
महाविद्यालयीन,
स्नातकोत्तर,
स्नातक,
विश्वविद्यालय
स्तर की विभिन्न विषयों
की पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध
है,
जिनकी
जानकारी हम प्राप्त करेंगे।
विज्ञान शाखा से ग्यारहवीं
और बारहवीं कक्षाओं के बाद
बीएस.सी,
बी.कॉम.
बी.सीए,
इलेक्ट्रिकल,
इलेक्ट्रॉनिक्स,
इंजिनियरिंग,
नर्सिंग
तथा एलएलबी (विधि)
की
पढाई हिंदी में की जा सकती
हैं। लेकिन इसमें एक समस्या
यह हैं कि जो लोग पहले से ही
इन विषयों को अंग्रेजी में
पढ़कर कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों
में पढा रहें हैं,
उन्हें
इन विषयों को पहले हिंदी में
पढना होगा तभी वे अपने
विद्यार्थिंयों का हिंदी
में पढा पाऐंगे। इसके लिए
डी.एड,
बी.एड,
तथा
एम.एड
के पाठ्यक्रमों में भी पहले
इन विषयों को हिंदी में पढ़ने
का पर्याय उपलब्ध कराना होगा।
इसके लिए भारत सरकार के
उच्चशिक्षा तथा तकनीकी
शिक्षा विभाग द्वारा विशेष
ध्यान देने की आवश्यकता
है। इन सभी परिवर्तनों से
हमारे देश की वैज्ञानिक चेतना
में जागृति बढेगी और केवल
अंग्रेजी के बोझ के नीचे दबे
प्रतिभाशाली विद्यार्थिंयों
के भविष्य को सवॉरने में
भी सहायता मिलेगी ।
इन
विषयों में अर्थशास्त्र,
पर्यावरण,
कंप्यूटर,
लेखांकण,
आयकर,
अंकेषण,
वाणिज्य,
प्रबंधन,
ग्रामीण
विकास,
विपणन,
मानव
संसाधन,
प्राणी
विज्ञान,
जीव
विज्ञान,
प्रतिरक्षा
विज्ञान,
सूक्ष्मजीव
शास्त्र,
जैव
प्रौद्योगिकी,
वनस्पती
शास्त्र,
पारिस्थितिकी,
पर्यावरण
विज्ञान,
अनुप्रयुक्त
प्राणीशास्त्र,
जैव
सांख्यिकी,
प्रकाशिकी,
सांख्यिकिय
और उष्मा-गतिकी,
भौतिकी,
गणित
भौतिकी,
प्रारंभिक
क्वान्टम यांत्रिकी,
स्पेक्ट्रोस्कोर्पी,
प्रायोगिक
भौतिक अवकल समीकरण,
संख्यात्मक
विष्लेषण,
निर्देशांक
ज्यामिति,
दीमीव,
सदिश
कलन,
सम्मिश्र
विश्लेषण,
गति
विज्ञान,
कार्बनिक
और अकार्बनिक रसायन,
कार्बनिक
रसायन विज्ञान,
भौतिक
रसायन,
प्रायोगिक
रसायन,
शोध
पद्धति,
सहकारिता
विज्ञान,
प्रायोगिक
वनस्पति कोश,
प्रायोगिक
वनस्पतिशास्त्र,
भृण
विज्ञान,
आण्विक
जैविकी और जैव प्रौद्योगिकी,
पारिस्थितिकी
और वनस्पतिविज्ञान,
भ्रौणिकी,
पर्यावरणीय
जैविकी,
अनुप्रयुक्त
प्राणीशास्त्र और व्यावहारिकी,
जैव
सांख्यिकी,
प्रायोगिक
प्राणीविज्ञान,
प्राणीशास्त्र,
कॉर्डेटा,
नाभिकिय
भौतिकी,
ठोस
अवस्था भौतिकी,
विद्यूत
चुंबकत्व,
विद्युत
चुंबकिकी,
पर्यावरण
अध्ययन,
शैवाल,
लाइकेन
एवं बायोफाइटा,
सूक्ष्म
जैविकी,
कवक
एवं पादप रोग विज्ञान,
कोशिका
विज्ञान अनुवांशिकी एवं
पादप प्रजनन,
शैवाल,
शैवक
एवं ब्रायोफायटा,
अवकलन
गणित,
समाकलन
गणित,
रेखीय
सिद्धांत,
विविक्त
गणित,
इष्टमितिकरण
सिद्धांत,
त्रिविम
निर्देशांक ज्यामिति,
सांख्यिकिय
और उष्मागतिकी भौतिकी,
इलेक्ट्रानिक्स
एंव ठोस प्रावस्था युक्तियॉं,
द्विमीय
निर्देशांक ज्यामिति,
त्रिविम
निर्देंशांक ज्यामिति,
व्यावसायिक
सांख्यिकी,
उद्यमिता
और लघु व्यापार प्रबंधन,
निगमीय
और वित्तीय लेखांकण,
भारतीय
बैंकिंग,
वित्तीय
व्यवस्था,
व्यापारिक
विधि,
सामान्य
प्रबंधन,
विपणन
प्रबंधन,
मानव
संसाधन प्रबंधन,
उच्चतर
प्रबंधन,
लेखांकण,
व्यावसायिक
वातावरण,
विपणन
शोध प्रबंध,
प्रबंधकिय
अर्थशास्त्र,
विज्ञापन
प्रबंधन,
अंतर्राष्ट्रीय
विपणन,
मानव
संसाधन प्रबंध,
क्रियात्मक
(प्रयोजनमूलक)
प्रबंधन,
व्यावसायिक
बजटन,
परियोजना
नियोजन एवं बजटरी नियंत्रण,
भारत
की संवैधानिक विधि,
विधिक
भाषा इत्यादि।
बी
एस.सी.
के
लिए उपयोगी प्राणि कार्यिकी
एवं जैव रसायन,
प्रतिरक्षा
विज्ञान,
सूक्ष्म
जीवविज्ञान एवं जैव प्रौद्योगिकी,
प्रायोगित
प्राणी विज्ञान,
कॉडेटा
(संरचना
एवं कार्य),
पारिस्थितिकी
एवं पर्यावरण जैविक,
बी.एससी
पार्ट 3
के
लिए अनुप्रयुक्त प्राणीशास्त्र,
व्यावहारिकी
एवं जैवसांख्यिकी,
तृतीय
वर्ष के लिए प्रायोगिक
प्राणिविज्ञान,
प्रकाशिकी
(भौतिकी),
सांख्यिकिय
और उष्मा गतिकी भौतिकी
बी.एस.सी
द्वितीय वर्ष के लिए। बी.एससी.
(तृतीय
वर्ष के लिए)
प्रारंभिक
क्वॉटम और स्पेक्ट्रोस्कोपी,
वास्तविक
विश्लेषण,
अवकलन
समीकरण (डिफ्रंशियल
इक्वीशन्स),
निदेशांक
ज्यामिति,
द्वीमीव,
सदीश
कलन,
समिश्र
मिश्रण,
गति
विज्ञान,
कार्बनिक
और अकार्बनिक रसायन,
इ.
उपलब्ध
हैं।
अर्थशास्त्र
में व्यावसायिक सांख्यिकी,
व्यावसायिक
अर्थशास्त्र,
समाजशास्त्र,
मनोविज्ञान
की पुस्तकें भी उपलब्ध है।
अब पॉलिटेक्निक की पुस्तकें
के बारे में जानेंगे। पॉलिटेक्निक
के द्वितिय और तृतीय वर्ष
की पुस्तकें:
प्रथम
वर्ष के लिए बेसिक इलेक्ट्रानिक्स,
बेसिक
इलेक्ट्रिकल इंजिनीयरिंग,
इलेक्ट्रिकल
मैनेजमेंट और इन्स्ट्रूमेंशन,
इलेक्ट्रिकल
सर्किट थ्योरी,
इनेक्ट्रिकल
मशीन,
पावर
सिस्टम,
माइक्रो
प्रोसेसर और सी प्रोग्रामिंग,
इलेक्ट्रिक
वर्कशॉप,
स्टेंथ
ऑफ मटेरियल,
फ्यूयिड
मैंकेनिक्स एण्ड मशीन,
इंजिनियरिंग
मटेरियल एण्ड प्रोसेसिंग,
मशीन
ड्रार्इंग और कंप्यूटर एडेड
ड्राफ्टींग,
बेसिक
ऑटोमोबाइल इंजिनियरिंग,
इलेक्ट्रिकल
इलेक्ट्रानिक्स इंजिनयरिंग,
थर्मोडायनामिक्स
और अंर्तदहन इंजिन,
वर्कशॉप
टेक्नॉलॉजी और मेट्रोलॉजी,
सी
प्रोग्रामिग,
बिडिंग
टेक्नॉलॉजी,
सर्वेयिंग,
ट्रान्सपोर्ट
इंजिनियरिंग,
सॉईल
फाउंडेशन इंजिनियरिंग,
कॉन्क्रिट
टेक्नोलॉजी,
बिल्डिंग
ड्रार्इंग इत्यादि।
इलेक्ट्रीकल
और इलेक्ट्रानिक्स इंजिनियरिंग
की पुस्तकें भी हिंदी में
उपलब्ध हैं-
बेसिक
इलेक्ट्रॉनिक्स,
बेसिक
मैकेनिकल इंजीनियरिंग,
बेसिक
इलेक्ट्रिकल इंजिनीयरिंग,
इलेक्ट्रिकल
प्रबंधन (मैंनेजमेंट)
एण्ड
इंस्टूमेंटेशन,
इलेक्ट्रिकल
सर्किट थ्योरी,
इलेक्ट्रिकल
मशीन,
पावर
सिस्टम,
माइक्रो
प्रोसेसर और सी प्रोग्रामिंग,
इलेक््ट्रिकल
वर्कशॉप,
इंटर
प्रोन्यूरशिप एण्ड मैनेजमेंट,
प्रशासनिक
विधि। इन पुस्तकों के माध्यम
से आसानी से इलेक्ट्रिकल
इंजिनियरिंग की पढाई पूरी
की जा सकती है।
सामान्य
अर्थशास्त्र,
लेखांकण
के मूल तत्व,
परिणामात्मक
अभिरूचि,
व्यापारिक
विधि,
व्यापारिक
विधि,
नीतिशास्त्र
और संरचना,
व्यापारिक
विधि,
नीतिशास्त्र
और संचार,
अंकेषण
और आश्वासन इत्यादि पुस्तकें
उपलब्ध हैं,
जिन्हें
राजस्थान विश्वविद्यालय
में समाविष्ट किया गया
है।
प्राय:
देखा
जाता है कि विधि संबंधी
पुस्तकें हिंदी में न मिलने
के कारण हमारी न्यायव्यवस्था
से आवाज उठती है कि हिंदी को
न्यायालयों में प्रयोग में
नहीं लाया जा सकता है। लेकिन
हिंदी में भी एलएलबी की पुस्तकें
उपलब्ध हैं,
जो
इस प्रकार हैं'
विधिशास्त्र
एवं विधि के सिद्धांत,
अपराध
विधि,
संपत्ती
अंतरण अधिनियम एवं सुखाधिकार,
कंपनी
विधि,
अंतर्राष्ट्रीय
विधि और मानवाधिकार,
श्रम
कानून (विधि),
प्रशासनिक
विधि,
आयकर
अधिनियम,
बीमा
विधि इत्यादि जिनकी
सहायता से विद्यार्थी हिंदी
में कानून की पढाई की जा सकती
है। इससे आगे चलकर यह लोग
न्यायालयों में हिंदी में
अपनी बात रख सकते हैं। इसमें
संविदा विधि,
दुष्कृति
विधि (मोटर
वाहन अधिनियम और उपभोक्ता),
हिंदु
(लॉ)
विधि
,
मुस्लिम
(लॉ)
विधि,
भारत
का संवैधानिक विधि,
विधिक
भाषा लेखन और सामान्य अंग्रेजी,
भारत
का विधिक और संवैधानिक
इतिहास,
लोकहित
वाद और विधिक सहायता और पैरा
लीगल सर्विसेस इत्यादि।
इसके
अतिरिक्त कृषि विज्ञान
और पशुचिकित्सा जैसे
विषयों को हिंदी में पढाने
से भी उसका सीधा फायदा देश के
किसानों को होगा क्योकि
यह दोनों विषय देश की मिट्टी
से जुड़े हैं। कृषि विज्ञान
को हिंदी में पढाये जाने से
देश की कृषि व्यवस्था को
इसका लाभ ही होगा। जिसकी
पूस्तकें भी हिंदी में उपलब्ध
है।
इसके
अतिरिक्त कंप्यूटर की
पढाई में सी-प्रोग्रामिंग,
इलेक्ट्रॉनिक्स
और शॉप प्रक्टिस,
सर्किट
एनॅलीसिस,
इलेक्ट्रॉनिक्स
मेजरमेंट एण्ड इन्स्ट्रुमेंटेशन,
इलेक्ट्रॉनिक
डिवाईसेस एवं सर्किटस्,
डिजीटल
इलेक्ट्रॉनिक्स,
वेब
प्रोपोगेशन एवं कम्यूनिकेशन
इंजिनियरिंग,
इलेक्ट्रॉनिक्स
इन्स्ट्रुमेंटेशन,
आदि
तकनीकी विषयों का समावेश
है। इन विषयों को सरल हिंदी
में पढाने से भारत सरकार का
डिलीटल इंडिया के सपने को
भी साकार किया जा सकता है।
भारत
सरकार के केंद्रीय विश्वविद्यालय
जैसे महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय
हिंदी विश्वविद्यालय,
वर्धा
और अटल बिहारी वाजपेयी
विश्वविद्यालय,
भोपाल
ने ऐसे कुछ पाठ्यक्रमों को
हिंदी में पढाने का शुभारंभ
भी किया है,
जिसमें
प्रबंधन,
इन्फॉर्मेशन
टेक्नोलॉजी,
कम्प्यूटर
साइंस,
हिंदी,
अंग्रेज़ी,
संस्कृत,
मनोविज्ञान,
मीडिया,
फिल्म
अध्ययन,
भौतिकी,
गणित,
सूचना-प्रौद्योगिकी
एवं भाषा-अभियांत्रिकी
आदि विषय सम्मिलित हैं।
इसके अतिरिक्त भाषा संबंधी
कुठ पाठ्यक्रमों का भी समावेश
है,
जैसें
पी-एच.डी.
स्पेनिश,
एम.फिल.
(कंम्प्यूटेशनल
लिंग्विस्टिक्स),
एम.फिल
(कंप्यूटेशनल
भाषाविज्ञान),
अनुषंगी
अनुशासन:
अनुप्रयुक्त
भाषाविज्ञान कंप्यूटर साइंस,
इनफॉरर्मेशन
टेक्नोलॉजी,
भौतिक
विज्ञान,
गणित
का भी समावेश हैं। इनसे कई
रोजगार के अवसर भी उपलब्ध
होते हैं जैसे कंप्यूटेशनल
भाषाविज्ञान के विद्यार्थी
देश विदेश के विभिन्न संस्थानों
में,
विश्वविद्यालय
में सहायक प्रोफेसर एवं शोध
अनुषंगी (रिसर्च
एसोशिएट)
विभिन्न
प्रौद्योगिकी संस्थानों
जैसे-आई.आई.टी.,आई.आई.आई.टी
अथवा विभिन्न शोध संस्थान
जैसे सी-डैक
अथवा विभिन्न बहुराष्ट्रीय
कंपनियों में भाषा संसाधन
विशेषज्ञ या कंप्यूटेशनल
भाषाविज्ञानी के रूप में
नियुक्ति प्राप्त कर सकते
हैं। देश-विदेश
के विभिन्न विश्वविद्यालयों
में भी शोध एवं अध्यापन के
पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं।
इसके अतिरिक्त एम.
फिल.
चायनीज़,
एम.
फिल.
स्पेनिश,
एम.फिल.
हिंदी
(भाषा
प्रौद्योगिकी),
एम.ए.
कंप्यूटेशनल
लिंग्विस्टिक्स पाठ्यक्रमों
से भी रोजगार के द्वार खुल गए
हैं,
जिसके
अंतर्गत कम्प्यूटेशनल
लिंग्विस्टिक्स के सैद्धांतिक
एवं अनुप्रयुक्त क्षेत्र
यथा-कम्प्यूटर
प्रोग्रामिंग भाषा,
प्राकृतिक
भाषा संसाधन आदि का अध्ययन
किया जाता है।मास्टर ऑफ
इन्फॉरमेटिक्स एन्ड
लैंग्वेज इंजीनियरिंग इस
पाठ्यक्रम के अंतर्गत भाषा
से जुड़े सूचना एवं अभियांत्रिकी
क्षेत्र का अध्ययन किया जाता
है। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों
में हिंदी भाषा को लेकर नई
अवधारणा का विकास करना है।
इस पाठ्यक्रम में भाषा-अभियांत्रिकी
एवं सूचना-प्रौद्योगिकी
से संबद्ध विविध प्रयोगात्मक
क्षेत्रों के अध्ययन पर बल
दिया जाता है।कम्प्यूटर
अप्लीकेशन में स्नातकोत्तर
डिप्लोमा (भाषा
प्रौद्योगिकी)
भाषा
प्रौद्योगिकीय अध्ययन विकास
एवं शोध के लिए बौद्धिक संसाधनों
का उत्पादन एवं प्रशिक्षण
प्रदान करना हैं। इसके अतिरक
चीनी भाषा में एडवांस्ड
डिप्लोमा डिप्लोमा पाठ्यक्रम
भी उपलब्ध हैं।यह एकीकृत
पाठ्यक्रम है,
जो
दो वर्षीय पाठ्यक्रम है,
जो
चार छमाही में पूर्ण होता है।
स्पेनिश भाषा में डिप्लोमा,
यह
एक वर्षीय पाठ्यक्रम है,
जो
दो छमाही में पूर्ण होता है।
स्पेनिश भाषा में एडवांस्ड
डिप्लोमा,
यह
दो वर्षीय पाठ्यक्रम है,
जो
चार छमाही में पूर्ण होता है।
जापानी भाषा में डिप्लोमा
यह एक वर्षीय पाठ्यक्रम है,
जो
दो छमाही में पूर्ण होता
है।मलयालम भाषा में डिप्लोमा,
उर्दू
भाषा में डिप्लोमा,
डिप्लोमा
इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन,
यह
एक वर्षीय अंशकालिक पाठ्यक्रम
है,
जो
दो छमाही में पूर्ण होता है।
फ्रेंच भाषा में डिप्लोमा,
यह
एक वर्षीय पाठ्यक्रम है,
जो
दो छमाही में पूर्ण होता है।
इसके अतिरिक्त संस्कृत
भाषा में डिप्लोमा,
स्पेनिश
भाषा में सर्टिफिकेट,
चीनी
भाषा में सर्टिफिकेट,
फ्रेंच
भाषा में सर्टिफिकेट पाठ़यक्रम,
जापानी
भाषा में सर्टिफिकेट,
बांग्ला
भाषियों के लिए सरल हिंदी
शिक्षण में सर्टिफिकेट इत्यादि
पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं।
ज्ञान-विज्ञान
के सभी क्षेत्रों में शिक्षण,
प्रशिक्षण
एवं शोध को हिन्दी माध्यम से
बढ़ाने हेतु 19
दिसंबर
2011
को
मध्यप्रदेश शासन ने अटल बिहारी
वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय,
भोपाल
की स्थापना की है। इस विश्वविद्यालय
का उद्देश्य ऐसी युवा पीढ़ी
का निर्माण करना है जो समग्र
व्यक्तित्व विकास के साथ
रोजगार कौशल हिंदी माध्यम
से करना है। विश्वविद्यालय
ऐसी शैक्षिक व्यवस्था का सृजन
करना चाहता है,
जो
भारतीय ज्ञान तथा आधुनिक ज्ञान
में समन्वय करते हुए छात्रों,
शिक्षकों
और अभिभावकों में ऐसी सोच
विकसित कर सके जो भारत केन्द्रित
होकर सम्पूर्ण सृष्टि के
कल्याण को प्राथमिकता दे। इस
विश्वविद्यालय का शिलान्यास
6
जून
2013
को
भारत के राष्ट्रपति माननीय
श्री प्रणव मुखर्जी के कर
कमलों से ग्राम मुगालिया कोट
की 50
एकड़
भूमि पर किया गया है। शिक्षा
सत्र 2012-13
में
60
विद्यार्थियों
से प्रारम्भ होकर इस विश्वविद्यालय
में सत्र 2013-14
में
358
विद्यार्थियों
ने अध्ययन किया तथा वर्तमान
सत्र 2014-15
में
4000
से
अधिक छात्र-छात्राओं
ने हिन्दी माध्यम से विभिन्न
पाठयक्रमों में पंजीयन कराया
है। अब तक 18
संकायों
में 200
से
अधिक पाठयक्रमों का हिन्दी
में निर्माण कर लिया गया है।
विश्वविद्यालय में प्रत्येक
छात्र को हिंदी भाषा के साथ
साथ एक विदेशी भाषा,
एक
प्रांतीय भाषा के साथ साथ
संगणक प्रशिक्षण की सुविधा
अंशकालीन प्रमाणपत्र कार्यक्रम
के माध्यम से उपलब्ध हैं। सभी
पाठयक्रमों में आधुनिक ज्ञान
के साथ उस विषय में भारतीय
योगदान की जानकारी भी दी जाती
है तथा संबंधित विषय में मूल्य
आधारित व्यावसायिकता के साथ
स्वरोजगार की अवधारणा के
संवर्धन पर ज़ोर दिया जाता है।
अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी
विश्वविद्यायल,
भोपाल
में चिकित्सा,
अभियांत्रिकी,
विधि,
कृषि,
प्रबंधन
आदि में हिंदी माध्यम से
शिक्षण-प्रशिक्षण
एवं शोध का कार्य कर रहा हैं।
अधिक जानकारी के लिए वेबसाइट
देखें।
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